यह गीत एक छत्तीसगढ़ी लोकगीत है | ये बहुत ही सुन्दर अंदाज़ में हमें स्मरण करता है कि हमारा शरीर और जो कुछ हमारे आसपास है सभी कुछ नश्वर है | आज नहीं तो कल सभी कुछ नष्ट हो जाना है | तो अगली बार जब आप अच्छी नौकरी की, प्रमोशन की, बंगले, धन अथवा किसी भी अन्य विषय में चिंता कर रहे हो तो यह गीत याद कर लेना आपके मुख पर मुस्कान आ जाएगी |
कवि : गंगाराम साखेत
हाय चोला माटी के राम
एकर का भरोसा चोला माटी के रे
द्रोणा जैसे गुरु चले गए
करण जैसे दानी संगी करण जैसे दानी
बाली जैसे वीर चले गए
रावण जस अभिमानी | चोला माटी के राम एकर .....
कोनो रिहिस ना कोनो रहे भैया ही सबके पारी
एक दिन आई सबके बारी
काल कोनोला छोड़ा नहीं
राजा रंक भिखारी | चोला माटी के राम एकर .......
होसे पार लगे बरहेके
हरि के नाम सुमरले संगी हरि के नाम सुमरले
ये दुनिया माया के रे पगला
जीवन मुक्ति कर ले | चोला माटी के राम एकर ......