Sunday, September 30, 2012

Chola Maati Ke Raam ( चोला माटी के राम )

यह गीत एक छत्तीसगढ़ी लोकगीत है | ये बहुत ही सुन्दर अंदाज़ में हमें स्मरण करता है कि हमारा शरीर और जो कुछ हमारे आसपास है सभी कुछ नश्वर है | आज नहीं तो कल सभी कुछ नष्ट हो जाना है | तो अगली बार जब आप अच्छी नौकरी की, प्रमोशन की, बंगले, धन अथवा किसी भी अन्य विषय में चिंता कर रहे हो तो यह गीत याद कर लेना आपके मुख पर मुस्कान आ जाएगी |

कवि : गंगाराम साखेत

चोला माटी के राम 
हाय चोला माटी के राम
एकर का भरोसा चोला माटी के रे

द्रोणा जैसे गुरु चले गए 
करण जैसे दानी संगी करण जैसे दानी
बाली जैसे वीर चले गए 
रावण जस अभिमानी | चोला माटी के राम एकर .....

कोनो रिहिस ना कोनो रहे भैया ही सबके पारी
एक दिन आई सबके बारी 
काल कोनोला छोड़ा नहीं 
राजा रंक भिखारी | चोला माटी के राम एकर .......

होसे पार लगे बरहेके 
हरि के नाम सुमरले संगी हरि के नाम सुमरले 
ये दुनिया माया के रे पगला 
जीवन मुक्ति कर ले | चोला माटी के राम एकर ......

Saturday, July 14, 2012

Bidhir Badhon Katbe Tumi ( बिधिर बाधोन काटबे तुमि )

आज फिर गुरुदेव का एक गीत लिख रहा हूँ | इस गीत का पूरा अर्थ तो नहीं जानता किन्तु संस्कृत के कुछ शब्दों से कुछ कुछ अंदाजा अवश्य लगा सकता हूँ | यह गीत उस समय लिखा गया था जब अंग्रेजी सत्ता भारत में अपने शिखर पर थी | ऐसे समय भारत जन मानुष बहुत ही हत्तोसाहित था | तब गुरुदेव ने भारतीयों का मनोबल बढ़ाने के लिए ये सुन्दर पंक्तियाँ लिखी थी | इसमें गुरुदेव देशवासियों का मनोबल बढ़ाते हुए कहते हैं वे अपनी शक्ति को पहचाने और विश्वास करे, वह शक्ति बड़े से बड़े बन्धनों को काट सकती है | एक बार फिर गुरुदेव ने बहुत ही सरल शब्दों में कितनी बड़ी बात कह दी है | यह गीत सत्यजीत रे की फिल्म 'घरे बाईरे' में किशोर कुमार की आवाज़ में सुना जा सकता है | 

कवि : गुरुदेव रबिन्द्रनाथ ठाकुर

बिधिर बाधोन काटबे तुमि
एमोन शक्तिमान
तुमि कि एमनी शक्तिमान |
आमादेर भांगा गोड़ा तोमार हाते
एमोन अभिमान
तोमादेर एमनी अभिमान ||

चिरोदिन तानबे पीछे
चिरोदिन राखबे नीचे
एतो बल नाई रे तोमार
शोयबे ना शेई टान | बिधिर बाधोन काटबे तुमि ...........

शाशोनेई जतोई घेरो
आछे बल दुर्बलेरो 
होउ ना जतोई बड़ो
आछेन भगबान 
आमादेर शक्ति मेरे
तोराओ बाछ्बी ने रे
बोझा तोर भारी होलेई
डूब बे तोरी खान | बिधिर बाधोन काटबे तुमि ............

Saturday, July 7, 2012

Ghir Ghir Aai Badariya Kaari ( घिर घिर आई बदरिया कारी )

भारत में मानसून का आगमन हो गया है | यही मौसम है मेघ मल्हार के गीतों का | भारतीय शास्त्रीय संगीत में इन गीतों के लिए अलग राग भी है - राग मियाँ की मल्हार |  प्रस्तुत है ऐसा ही एक गीत | 

कवि : जावेद अख्तर 

घिर घिर आई बदरिया कारी
घर घर लाई लाई महर मतवारी
घिर घिर आई बदरिया कारी 

काली काली कोयल कूके
डाली डाली भंवरा गूंजे
सन सन आये भीगी हवाएं
घन घन काले बदरा बोले

छम छम बाजे बरखा पायल
झम झम बरसे बदरी पागल
गिन गिन तिन राह निहारूं
किन किन नाम तोहे पुकारूं 

घिर घिर आई बदरिया कारी
घर घर लाई लाई महर मतवारी
घिर घिर आई बदरिया कारी 

Thursday, July 5, 2012

Aaj Jaane Ki Jid Na Karo ( आज ज़ाने की ज़िद ना करो )

कवि : फ़य्याज़ हाशमी

आज ज़ाने की ज़िद ना करो
यूँ ही पहलू में बैठे रहो 
आज ज़ाने की ज़िद ना करो 

हाय मर जायेंगे 
हम तो लुट जायेंगे
ऐसी  बातें किया ना करो | आज ज़ाने ......

तुम ही सोचो ज़रा 
क्यों न रोकें तुम्हे 
जान जाती है जब
उठ के जाते हो तुम 
तुमको अपनी कसम जानेजां
बात इतनी मेरी मान लो | आज ज़ाने .....

वक्त के कैद में जिंदगी है मगर
चंद घड़ियाँ यही है जो आज़ाद है
इनको खोकर मेरी जानेजां 
उम्र भर ना तरसते रहो | आज ज़ाने .......

Monday, July 2, 2012

Tu Thakur Tum Peh Ardaas ( तू ठाकुर तुम पे अरदास )


आज का गीत गुरु ग्रन्थ साहिब से एक शबद कीर्तन है | 

कवि : गुरु नानक देव 

तू ठाकुर तुम पे अरदास*
जियो पिंड सब तेरी रास**

तुम मात-पिता हम बारक तेरे
तुमरी कृपा में सुख घनेरे | तू ठाकुर ......

कोई न जाने तुमरा अंत
ऊँचे ते ऊँचा भगवंत | तू ठाकुर ....

सगल समग्री तुमरे सूत्र धारी 
तुम पे होए सो आज्ञाकारी | तू ठाकुर ....... 

तुमरी गत मीत तुम्ही जानी
नानक दास सदा कुर्बानी | तू ठाकुर ........

* अरदास : प्रार्थना 
** जियो पिंड सब तेरी रास : शरीर और आत्मा सभी तेरी संपत्ति है 

Sunday, July 1, 2012

Jalte Hain Jiske Liye ( जलते हैं जिसके लिए )

मजरूह सुल्तानपुरी का यह गीत अपने आप में सुन्दर तो है ही किन्तु स्वर्गीय तलत महमूद की आवाज़ इस गीत को एक अलग ऊँचाई प्रदान करती है |

कवि : मजरूह सुल्तानपुरी 

जलते हैं जिसके लिए तेरी आँखों के दीये 
ढुंढ लाया हूँ वही गीत मैं तेरे लिए

दर्द बन के जो मेरे दिल में रहा, ढल न सका
जादू बन के तेरी आँखों में रुका, चल न सका
आज लाया हूँ वही गीत मैं तेरे लिए | जलते हैं ......

दिल में रख लेना इसे हाथों से ये छुटे न कहीं
गीत नाजुक है मेरा शीशे से भी टूटे न कहीं
गुनगुनाऊंगा यही गीत मैं तेरे लिए | जलते हैं ......

जब तलक न ये तेरे रस के भरे होठों से मिले
यूँ ही आवारा फिरेगा ये तेरी जुल्फों के तले
गाये जाऊंगा यही गीत मैं तेरे लिए | जलते हैं .........

Friday, June 29, 2012

Ei Meghla Dine Ekla ( एई मेघला दिने एकला )

आज का गीत एक पुराना बंगाली गीत है | हेमंत दा की आवाज़ में यह गीत सुनकर मन प्रसन्न हो गया | 

कवि : गौरीप्रसन्ना मजुमदार

एई मेघला दिने एकला घोरे थाके नातो मोन
काछे जाबो कोबे पावो ओगो तोमार निमोंत्रण
एई मेघला ......

जुथी बोने ओई हवा, कोरे शुधु आशा जावा
हाय हाय रे, दिन जाई रे, भारे आंधारे भुबोन
काछे जाबो ........

शुधु झोरे झोरो झोरो, आज बारी शारा दिन
आज जेनो मेघे मेघे, होलो मोनजे उदाशीन

आजी आमी खोने खोने, कि जे भाबी आनो मोने
तुमि आशबे, ओगो हांश्बे, कोबे होबे शी मिलों
काछे जाबो .........
एई मेघला ..........

इसका टूटा-फुटा हिंदी अनुवाद कुछ यूँ है :

ओ मेघा, मन है मेरा बैचेन
पास न आओ, कैसे मिले चैन
कब आएगा तुम्हारा निमंत्रण

चमेली की कतारों से आती है हवा
हाई हाई रे, दिन जाय रे, छाया है घना अन्धकार

तूफानी हवा संग आया सावन 
झर झर बरसे आज सारा दिन 
क्यों है मेरा मन उदासीन

पल पल होता मन व्याकुल
तुम कब आओगे, मुस्कुराओगे
कब होगा हमारा मिलन

Wednesday, June 27, 2012

Bula Raha Hai Koi Muzko ( बुला रहा है कोई मुझको )

एक बार फिर इंडियन ओशीयन का गीत लिख रहा हूँ | यह गीत भी उनके नए एल्बम '१६/३३० खजूर रोड' से है | इस गीत के बोल मुझे अपने कॉलेज के दिनों का स्मरण कराते हैं, जब दिल में कुछ बनने की, कुछ कर दिखाने की एक आग सी लगी थी | तब उसका सच्चाई के सागर से सामना नहीं हुआ था ना :) | 

कवि : संजीव शर्मा 

बुला रहा है कोई मुझको
लुभा रहा है कोई 
टिके है पाँव जमीं पर 
है इम्तिहान की घड़ी |

पाँव जमीं पर आसमाँ पे नज़र ........
पाँव जमीं पर आसमाँ पे नज़र ........

बुला रहा है कोई मुझको
लुभा रहा है कोई 
है बंद गली के उस तरफ 
खुले आसमाँ की जमीं |

बादल गरज रहे उड़ चला है मन ......

Tuesday, June 26, 2012

Man Re Tu Kahe Na ( मन रे तू काहे न धीर धरे )

कई बार मन एक बेलगाम घोड़े की तरह किसी भी दिशा में सरपट दौड़ने लगता है तो कभी उन बातों को लेकर विवल हो उठता है जिसका उस पर उसका कोई नियंत्रण ही नहीं | ऐसे ही क्षणों के लिए शायद साहिर लुधियानवी ने यह गीत लिखा है | 

कवि : साहिर लुधियानवी 

मन रे तू काहे न धीर धरे 
ओ निर्मोही , मोह न जाने, जिनका मोह करे 
मन रे तू काहे न धीर धरे |

इस जीवन की चढ़ती ढलती 
धूप को किसने बाँधा 
रंग पे किसने पहरे डाले 
रूप को किसने बाँधा 
काहे ये जतन करे | मन रे .......

उतना ही उपकार समझ
कोई जितना साथ निभा दे
जनम मरण का मेल है सपना
ये सपना बिसरा दे 
कोई न संग मरे | मन रे .......

यह गीत सुनकर पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि यह गीत अधूरा है | हो न हो साहिर साहब ने इस गीत में एक या दो पद और लिखे होंगे जो फिल्म में सम्मिलित नहीं किये गए | खैर मैंने अपनी सीमित क्षमता से इस गीत में चार पंक्तियाँ जोड़ी है | आशा है जब परलोक में साहिर साहब से भेंट होगी तो वे मुझे इसके लिए क्षमा करेंगे :) |

इतना तू सोचे मगर 
करने वाला और 
इच्छा की तूने सीमा न जानी
देने वाला और
काहे तू स्वप्न बुने | मन रे तू कहे न धीर धरे .... |

Monday, June 25, 2012

Baanwra Man Dekhne Chala ( बाँवरा मन देखने चला )

कवि : स्वानंद किरकिरे

बाँवरा मन देखने चला एक सपना 
बाँवरे से मन की देखो बाँवरी हैं बातें 
बाँवरी सी धड़कने है बाँवरी है साँसे
बाँवरी सी करवटों से निंदिया दूर भागे
बाँवरे से नैन चाहे
बाँवरे झरोखों से
बाँवरे नजारों को तकना | बाँवरा मन ......

बाँवरे से इस जहां में
बाँवरा एक साथ हो 
इस सयानी भीड़ में 
बस हाथों में तेरा हाथ हो
बाँवरे सी धुन हो कोई 
बाँवरा एक राग हो 
बाँवरे से पैर चाहे 
बाँवरे तरानों पे
बाँवरे से बोल पे थिरकना | बाँवरा मन .........

बाँवरा सा हो अँधेरा 
बाँवरी खामोशियाँ 
थरथराती लौ हो मद्धम
बाँवरी मदहोशियाँ 
बाँवरा एक घुंघटा चाहे
होले होले बिन बताये 
बाँवरे से मुख से सरकना | बाँवरा मन ..........

Sunday, June 24, 2012

Dheu Bhaange Paar Bhaange ( धेऊ भांगे पार भांगे )

आज का गीत इंडियन ओशीयन के ताज़ा एल्बम '१६/३३० खजूर रोड' से है | मैं इसका पूरा अर्थ तो नहीं जानता किन्तु यह नाविकों द्वारा गाया जाने वाला एक बंगाली लोकगीत लगता है | इसमें कवि अपने मन की अवस्था की तुलना नदी की लहरों से कर रहें है | वे कहते है कि नदी की लहरों की ही तरह उनका मन दौड़ रहा है | बाकी का अर्थ आप अपने किसी बंगाली मित्र से पूछ सकते हैं :) |

कवि : अविक मुखोपाध्याय

धेऊ भांगे पार भांगे 
मोनो आमार भांगे 
धेऊ भांगे पार भांगे 
शोपनो आमार भांगे 
आमार भांगा ह्रदय 
शोना लागे, तोरी ताने रे | धेऊ भांगे ..........

नोदिर पानी चोकेर पानी
नोदि होइया बोय
एई नोदि तुई देखलि आतो 
चोखे डोरे नार | धेऊ भांगे .......

ओर खोसेते पागल होईला 
तोरे प्राणेते प्राण 
आशार गुंजीते पाइला 
आमार नाम || 

Friday, June 22, 2012

Din Dhal Jaye ( दिन ढल जाए )

कवि : शैलेन्द्र


दिन ढल जाए हाय रात न जाये 
तू तो न आये तेरी याद सताए | दिन ढल जाए ....

प्यार में जिनके सब जग छोड़ा और हुए बदनाम 
उनके ही हाथों हाल हुआ ये बैठे है दिल को थाम 
अपने कभी थे अब है पराये | दिन ढल जाए .....

ऐसी ही रिमझिम ऐसी फुवारै, ऐसी ही थी बरसात 
खुद से जुदा और जग से पराये हम दोनों से साथ 
फिर से वो सावन अब क्यों ना आये | दिन ढल जाए .......

दिल के मेरे पास हो इतने फिर भी हो कितनी दूर 
तुम मुझसे, मैं दिल से परेशां दोनों है मजबूर 
ऐसे में किस को कौन मनाये | दिन ढल जाए .......

Thursday, June 21, 2012

Sukh Ke Sab Saathi ( सुख के सब साथी )

कवि : राजिंदर किशन 

सुख के सब साथी दुःख में न कोई 
मेरे राम मेरे राम 
तेरा नाम एक साझा दूजा न कोई

जीवन आनी जानी छाया झूठी माया झूठी काया
फिर काहे को सारी उमरिया पाप की गठरी ढोई | सुख के ....

ना कुछ तेरा ना कुछ मेरा ये जग जोगी वाला फेरा
राजा हो या रंक सभी का अंत एक सा होई | सुख के ......

बाहर की तू माटी फाके मन के भीतर क्यों न झांके 
उजले तन पर मान किया और मन की मेल ना धोई | सुख के .....

Tuesday, June 19, 2012

Wahan Kon Hai Tera ( वहां कौन है तेरा )

मैंने पहले लिखा था कि मैं फ़िल्मी गीतों से दूर रहने का प्रयास करता हूँ | लेकिन यह पूर्ण सत्य नहीं है | मुझे पुराने फ़िल्मी गीत बहुत पसंद है विशेषकर साहिर लुधियानवी, शैलेन्द्र और गुलज़ार द्वारा लिखे गीत | उनके द्वारा लिखे गीत सुनकर ऐसा लगता है जैसे गीत सीधे किसी के ह्रदय से आ रहा हो क्योंकि वह सीधा आपके ह्रदय मैं चला जाता है, गले, मुख अथवा कानो को जैसे उसने स्पर्श ही नहीं किया हो | प्रस्तुत है शैलेन्द्र द्वारा लिखा है मधुर गीत फिल्म गाइड से |

कवि : शैलेन्द्र 

वहां कौन है तेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ 
दम ले ले घड़ी भर ये छैयां पायेगा कहाँ | वहां कौन है तेरा 

बीत गए दीन प्यार के पंछी सपना बनी वो रातें
भूल गए वो तू भी भुला दे प्यार की वो मुलाकाते | प्यार की वो मुलाकाते 

सब दूर आन्धेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ 
दम ले ले घड़ी भर ये छैयां पायेगा कहाँ | वहां कौन है तेरा 

कोई भी तेरी राह ना देखे नैन बिछाये ना कोई 
दर्द से तेरे कोई ना तड़पा आँख किसी की ना रोई | आँख किसी की ना रोई 

कहीं किसको तू मेरा मुसाफिर जायेगा कहाँ
दम ले ले घड़ी भर ये छैयां पायेगा कहाँ | वहां कौन है तेरा 

मुसाफिर तू जाएगा कहाँ 

कहते है ज्ञानी दुनिया है पानी, पानी पे लिखी लिखाई
है सबकी देखी है सबकी जानी हाथ किसी के ना आई | हाथ किसी के ना आई 

कुछ तेरा ना मेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ |
दम ले ले घड़ी भर ये छैयां पायेगा कहाँ | वहां कौन है तेरा 

Monday, June 18, 2012

Maaya Maaya Re ( माया माया रे )

पिछले वर्ष भारत में एक बहुत ही अच्छा कार्यक्रम टीवी पर दिखाया गया । बहुत दिनों पश्च्यात एक कार्यक्रम ऐसा आया जिसको शुरू से आखिर तक देखने की उत्सुकता हुई और प्रत्येक एपीसोड़ देखकर मन प्रसन्न हुआ । वह कार्यक्रम दीवारिस्ट ( dewarist ) था । प्रत्येक एपीसोड़ में दो या तीन बेंडो अथवा संगीतकारों को बुलाया जाता और उन्हें मिलकर एक नया गीत प्रस्तुत करने को कहा जाता । इस तरह प्रत्येक एपीसोड़ में एक से बढ़कर एक गीत प्रस्तुत किये गए । सभी इतने सुन्दर थे कि उन में से सर्वश्रेष्ठ ढूंढना कठिन था । इस कार्यक्रम को देखकर एहसास हुआ कि हमारे देश में कितनी रचनात्मकता छुपी हुई है और अगर हम मिल कर काम करना सिख जाए तो संगीत ही नहीं अपितु सभी क्षेत्रों में बहुत ही रचनात्मक कार्य कर सकते हैं । प्रस्तुत है उसी कार्यक्रम में इंडियन ओशियन और मोहित चौहान द्वारा गाया यह गीत । 

कवि : इंडियन ओशियन 

माया माया रे 
ठगडी माया रे 
खेले कैसे खेल 
खेले कैसे खेल

बड़ी कलंदर 
खूब निकाले 
ये पत्थर से तेल

मन का पंछी
तन का पिंजरा 
बिन मांगे की जेल 

Sunday, June 17, 2012

Bulla Ki Jaana Main Kon ( बुल्ला कि जाणा मैं कोण )


हर व्यक्ति के जीवन में एक समय ऐसा आता है जब वह स्वयं को जानना चाहता है, अपने जीवन के लक्ष्य को समझना चाहता है | मैंने इस भावना को कुछ इस तरह व्यक्त किया है |

नदी से पूछता हूँ बहना क्या है
तितली से पूछता हूँ उड़ना क्या है
झरने से पूछता हूँ गिरना क्या है
पर नहीं जानता किस्से पूछु मेरी मंज़िल क्या है

सबसे पूछता हूँ किंतु कोई न बता पाता है, पाप और पुण्य क्या है
कोई कहता इसे कर्मो का फल, कोई इसे भाग्य का खेल
सब है सुख के पीछे, पर किसे न मिल पाता है, ये माजरा क्या है
जिसने देखा हो वो मुझे ज़रा बताये ये खुदा क्या है

लेकिन इस भावना को अगर किसी ने सबसे अच्छे अंदाज़ में प्रस्तुत किया है तो वह है पंजाबी सूफी कवि बुल्ले शाह | प्रस्तुत है उनका यह गीत |

कवि : बुल्ले शाह 

बुल्ला कि जाणा मैं कोण
ना मैं मोमिन विच्च मसीतां
ना मैं विच कुफर दियां रीतां 
ना मैं पाका विच पलीतां

ना मैं अन्दर वेद किताबां
ना मैं विच भंग शराबां
ना विच रिदां मस्त खराबां
ना मैं शादी ना गमनाकी
ना मैं विच पलीती पाकी
ना मैं आबी ना मैं खाकी
ना मैं आतिश ना मैं पोण | बुल्ला कि जाणा मैं कोण .....

ना मैं अरबी ना लाहोरी
ना मैं हिंदी शहर नागोरी 
ना हिन्दू ना तुर्क पेशारी
ना मैं बैठ मजहब दा पाया
ना मैं आदम हव्वा जाया 
ना मैं कोई अपणा नाम कराया 
अव्वल आखिर आप नु जाणा
ना कोई दूजा होर पेहचाणा
मैं तो होर ना कोई सयाणा
बुल्ले शाह खेड़ा है कोण | बुल्ला कि जाणा मैं कोण ......

ना मैं मूसा ना फरों
ना मैं जागण ना विच सोण
ना मैं आतिश ना मैं पोण
ना मैं रैदां विच भोण 
बुल्ले शाह खेड़ा है कोण | बुल्ला कि जाणा मैं कोण .......
   

Tuesday, June 12, 2012

Ami Chini Go Chini ( आमी चिनी गो चिनी तोमारे )

मान लीजेए कोई ऐसा कवि हो जो हरिवंश राय बच्चन की तरह प्रेम के गीत लिख सकता हो और सुमित्रानंदन पन्त की तरह छायावादी कवितायें भी लिख सकता हो तो कह कवि कैसा होगा | गुरुदेव ऐसे ही कवि थे वे हर विधा में, हर रस में इतने सुन्दर गीत लिखते थे कि आप उन्हें पसंद किये बगैर रह नहीं सकते भले ही आपको उनका अर्थ समझ आता हो या न आता हो | जैसे इस गीत को ही लीजिये कितने सरल और सुन्दर शब्दों में उन्होंने यह प्रेम गीत लिखा है | और मैं तो इस गीत का अर्थ भी ठीक से नहीं जानता | सचमुच वे विश्व की एक महान प्रतिभा थे | इस गीत को सत्यजीत रे की फिल्म 'चारुलता' में किशोर कुमार की आवाज में सुना जा सकता है |

कवि : गुरुदेव रबिन्द्रनाथ ठाकुर

आमी चिनी गो चिनी तोमारे
ओगो बिदेशिनी 
आमी चिनी गो चिनी तोमारे 
ओगो बिदेशिनी 
तुमि थाको शिन्धु पारे 
ओगो बिदेशिनी
ओगो बिदेशिनी 

देखेची शारोदो प्राते तोमार
देखेची माधोबी राते तोमार
देखेची रिधिमा झारे 
तोमाय देखेची ओगो बिदेशिनी | 

आमि आकाशे पातियाकान 
शुनेची शुनेची तोमार गान
आमि तोमारे शोपेचे प्राण
ओगो बिदेशिनी | 

भुवन भूमिया शेषे
आमि एशेशी नूतोन देशे
आमि ओतिथि तोमारि दारे
ओगो बिदेशिनी ओगो बिदेशिनी || आमि चीनी ......

Monday, June 11, 2012

Bhor ( भोर )

वैसे तो इंडियन ओशियन के सभी गीत एक से बढ़कर एक है किन्तु यह गीत मुझे सबसे अधिक पसंद है | इस गीत में कवि से सदा सक्रीय रहने का सन्देश बहुत ही सुन्दर तरीके से दिया है | 

गौर करे तो ऐसा लगता है कवि शारीरिक शिथिलता की अपेक्षा मानसिक शिथिलता की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं | हमारा देश शाशीरिक शिथिलता की अपेक्षा मानसिक शिथिलता से ही तो अधिक आहत हुआ है | वरना क्या कारण है कि आज भी कॉलेज में दाखिले से पहले विद्यार्थी की जाति पूछी जाती है, देश में करोड़ो के लिए दो जून की रोटी नहीं है लेकिन पत्थर की मूर्तियों को मनो घी और दूध चढ़ रहा है, क्यों अलग भाषा बोलने वाले या अलग धर्म का अनुसरण करने वालों को हीन द्रष्टि से देखा जाता है, क्यों चाँद और तारों को देखकर रिश्ते तय किये जाते है | आखिर कब हमारी सामाजिक चेतना का पंछी उन्नीसवीं सदी के वृक्ष से उड़ कर इक्कीसवी सदी के वृक्ष की ओर प्रयाण करेगा | 

कवि : संजीव शर्मा  

भोर भोर भोर भोर, भोर-भई

एक उड़ता पंछी
जा बैठा एक डाल
जा बैठा एक डाल | भोर भोर ......

खुशबू डाल की मन हर ले गई
मन हर ले गई
खुशबू डाल की मन हर ले गई
मन हर ले गई
गजब तरंग जमाल | भोर भोर ........

सांस सांस चढ़े इश्क का जादू 
रह रह करे कमाल 
कोन घड़ी में चुनी डाल थी 
कोसे सुध बुध हाल | भोर भोर ........

पंछी कहे किस गगन उडु में 
बेहतर जो इस डाल 
पंख सुनहरी शहद चढ़ गया 
अंतर थम गई चाल | भोर भोर .........

क़त्ल भी ऐसा हुआ 
कि पंछी मर गए मालामाल 
अल्लाह मेरे चिडिबाज़ ने ऐसा फैका जाल 
ऐसा क़त्ल हुआ, मालामाल हुआ, क़त्ल भी होके मालामाल 
क़त्ल भी ऐसा हुआ 
कि पंछी मर गए मालामाल 
कतरा कतरा आसमान है 
बुझी असल उड़ान || भोर भोर ........

Sunday, June 10, 2012

Aazaadiyan ( आज़ादियाँ )

वैसे तो मैं फ़िल्मी गीतों से दूर रहने का प्रयास करता हूँ किन्तु यह गीत सुनकर ऐसा लगा कि मानो मन के किसी कोने में पड़ी भावनाओं को किसी ने स्वर प्रदान कर दिया हो | यह गीत सचमुच ही नई पीढ़ी में धधक रही कुछ कर दिखाने की चाह को उजागर करता है | शायद ये चाह पहले की पीढ़ीयों में भी रही होगी किन्तु वर्त्तमान पीढ़ी की ख़ास बात यह है कि वह अपने लक्ष्यों को पाने के लिए पुरानी परम्पराओं को तोड़ने और नयी अनजान राहों को चुनने से नहीं हिचकिचा रही है | यही कारण है कि आजकल भारतीय संगीत और फ़िल्मों में कहीं कुछ नयापन देखने को मिलता है | 

कवि : अमिताभ भट्टाचार्य 

पैरों की बेड़ियाँ ख्वाबों को बांधे नहीं रे, कभी नहीं रे 
मिट्टी की परतों को नन्हे से अंकुर भी चीरे, धीरे धीरे |

इरादे हरे भरे जिनके सीनों में घर करे 
वो दिल की सुने, करे, ना डरे, ना डरे | 

सुबह की किरणों को रोके वो सलाखें है कहाँ 
जो ख्यालों पे पहरे डाले वो आँखे है कहाँ 
पर खुलने की देरी है परिंदे उड़ के चूमेंगे 
आसमां, आसमां, आसमां | 

आज़ादियाँ आज़ादियाँ मांगे ना कभी
मिले मिले मिले 
आज़ादियाँ आज़ादियाँ 
जो छीने वही, जी ले जी ले, जी ले |

कहानी ख़त्म है या शुरुआत होने को है 
सुबह नयी है ये या फिर रात होने को है
आने वाला वक्त देगा पनाहे 
या फिर से मिलेंगे दो राहे 
खबर क्या, क्या पता | |

Saturday, June 9, 2012

Morni ( मोरनी )

आज का गीत मेरा सबसे पसंदीदा गीत है | 

हिमाचल प्रदेश के इस लोकगीत में एक माँ और पुत्री का मधुर संवाद है | इसके बोल पहाड़ी है | मोहित चौहान जो स्वयं हिमाचल प्रदेश से है ने अपनी मोहित कर देने वाली आवाज़ में सिल्क रूट के एल्बम 'पहचान' में इसे गाया है |

कवि : लोकगीत 

अम्मा पुछदी सुण धिये मेरिये
धूभरी इतणी तू किया करिया होये |

पारली वणीया मोर जो बोले हो 
अम्माजी इन मोर निंदर गवाई हो |

सड ले बन्दुकिया सड ले शिकारी जो 
धिये भला एता मोर मार गिराना हो |

मोर णी मारना 
मोर णी गवाना हो 
ओ अम्माजी इंड मोर पिंजरे पुवाणा हो |

कुथी जांदा चन्द्रमा 
कुथी जांदा तारे हो 
ओ अम्माजी कुथी जांदे दिलांदे पयारे हो |

हो छुप्पी जांदा चन्द्रमा 
छुप्पी जांदा तारे हो 
ओ धिये भला नय्ये छुप्पे दिलांदे पयारे हो ||

हिंदी अनुवाद :

अम्मा पूछती मेरी प्रिये क्यों है तू इतनी व्याकुल |

ओ अम्माजी पास के जंगल के मोर ने 
मैंने निंद्रा उड़ाई है |

चलो बुलाएँ एक बन्दूक चलो लायें एक शिकारी 
और इस मोर को मार गिराए |

मोर नी मारना 
मोर नी गवाना
इस मोर को मैं पिंजरे में रखूंगी |

अम्माजी ये चन्द्रमा कहाँ जाता है  
कहाँ जाते हैं ये तारे 
और कहाँ जाते हैं हमारे प्यारे 

चन्द्रमा छुप जाता है 
और तारे भी छुप जाते हैं 
मेरी प्रिये, लेकिन जो हमारे प्रिय है वे सदा हमारे ह्रदय में निवास करते हैं |

Friday, June 8, 2012

Jhini Chadariya ( झीनी चदरिया )

आज का गीत भारत के महाकवि कबीर दास जी का लिखा हुआ है | वे महाकवि इसलिए हैं क्योंकि आज पांच सौ वर्ष बाद भी उनके गीत उतने ही जीवंत और लोकप्रिय है जितने शायद वे अपने समय में थे | आज भी उनके दोहे और गीत भारतीय जन मानस को श्रेष्ठ जीवन मूल्यों और सदाचरण का सन्देश दे रहे हैं |

इस गीत में कबीर मानव शरीर की तुलना चादर से कर रहे हैं | जिस प्रकार एक चादर को बनाने में दस माह का समय लगता है (१५वीं शताब्दी में ) उसी प्रकार मानव शरीर भी दस माह में तैयार होता है | कबीर दास जी कहते हैं कि अधिकतर पुरुष इस शरीर रूपी चादर को गलत आचरण से मैली कर देते हैं | इसलिए वह बड़े जतन से सद आचरण का पालन करने का प्रयास करते हैं ताकि अंत में इस शरीर को ईश्वर को ज्यों का त्यों लौटा सके | 

यह गीत कई लोगों ने अलग अलग रूप में अपने हिसाब से गाया है | मुझे इंडियन ओशियन द्वारा गया हुआ रूप बहुत पसंद है | उन्होंने गीत को अपने हिसाब से थोड़ा बदल दिया है | वही गीत यहाँ पर लिख रहा हूँ |

कवि : कबीर

झीनी झीनी झीनी झीनी

झीनी रे झीनी रे झीनी चदरिया झीनी रे झीनी रे झीनी 
के राम रस पीनी चदरिया झीनी रे झीनी रे झीनी |

अष्ट कमल दल चरखा डोले
पांच तत्त्व गुण तीनी | 

साँ को सियत मास दस लागे
ठोक ठोक के बीनी | |  झीनी रे .......

सो चादर सुर नर मुनि ओढ़ी
ओढ़ी के मैली कीनी चदरिया | 

दास कबीर ने जतन करि ओढ़ी
ज्यूँ की त्यूं धर दीनी ||

Thursday, June 7, 2012

Yun Nikal Pada Hoon ( यूँ निकल पड़ा हूँ सफ़र पे मैं )

इस ब्लॉग को लिखने वाले की भावनाओं को किसी अज्ञात कवि ने बड़ी सुन्दंरता से इस गीत में प्रस्तुत किया है ।

कवि : अज्ञात

यूँ निकल पड़ा हूँ सफ़र पे मैं 
मुझे मंजिलों की तलाश है 
नए रास्ते नए आसमां 
नए होसलों की तलाश है ।

जहां बंदिशों की हो हद ख़तम 
उस हसीं सहर की तलाश है
जहां रंग-ओ-खुशबू का हो मिलन
मुझे उस उफ़क की तलाश है ।

Wednesday, June 6, 2012

Ik Onkar ( इक ओंकार )

कहते हैं हर अच्छे कार्य का प्रारंभ ईश्वर का नाम ले कर करना चाहिए तो चलिए इस ब्लॉग की शुरुआत करते हैं गुरु ग्रन्थ साहिब के इस मधुर पद से ।

कवि : गुरु नानक देव

इक ओंकार सतनाम करता पुरखु 
निरभउ निर्वैर
अकाल मूरति
अजूनी सैभं गुरु प्रसादि ।
जपु
आदि सच नानक होसी भी सच
सोचे सोच न होवेय जो सोची लखवार ।
चुप्पै चुप न होवई जो लाई रहा लिव तार
भुखिया भूख न उतरि जे बन्ना पुरिआ भार ।
सहस सिआणपा लख होहि त इक न चलै नालि 
किव सचिआरा होइये किव कूड़े तुटे पालि ।
हुकुमि रजाई चलना
नानक लीखिया नालि ।