Sunday, June 17, 2012

Bulla Ki Jaana Main Kon ( बुल्ला कि जाणा मैं कोण )


हर व्यक्ति के जीवन में एक समय ऐसा आता है जब वह स्वयं को जानना चाहता है, अपने जीवन के लक्ष्य को समझना चाहता है | मैंने इस भावना को कुछ इस तरह व्यक्त किया है |

नदी से पूछता हूँ बहना क्या है
तितली से पूछता हूँ उड़ना क्या है
झरने से पूछता हूँ गिरना क्या है
पर नहीं जानता किस्से पूछु मेरी मंज़िल क्या है

सबसे पूछता हूँ किंतु कोई न बता पाता है, पाप और पुण्य क्या है
कोई कहता इसे कर्मो का फल, कोई इसे भाग्य का खेल
सब है सुख के पीछे, पर किसे न मिल पाता है, ये माजरा क्या है
जिसने देखा हो वो मुझे ज़रा बताये ये खुदा क्या है

लेकिन इस भावना को अगर किसी ने सबसे अच्छे अंदाज़ में प्रस्तुत किया है तो वह है पंजाबी सूफी कवि बुल्ले शाह | प्रस्तुत है उनका यह गीत |

कवि : बुल्ले शाह 

बुल्ला कि जाणा मैं कोण
ना मैं मोमिन विच्च मसीतां
ना मैं विच कुफर दियां रीतां 
ना मैं पाका विच पलीतां

ना मैं अन्दर वेद किताबां
ना मैं विच भंग शराबां
ना विच रिदां मस्त खराबां
ना मैं शादी ना गमनाकी
ना मैं विच पलीती पाकी
ना मैं आबी ना मैं खाकी
ना मैं आतिश ना मैं पोण | बुल्ला कि जाणा मैं कोण .....

ना मैं अरबी ना लाहोरी
ना मैं हिंदी शहर नागोरी 
ना हिन्दू ना तुर्क पेशारी
ना मैं बैठ मजहब दा पाया
ना मैं आदम हव्वा जाया 
ना मैं कोई अपणा नाम कराया 
अव्वल आखिर आप नु जाणा
ना कोई दूजा होर पेहचाणा
मैं तो होर ना कोई सयाणा
बुल्ले शाह खेड़ा है कोण | बुल्ला कि जाणा मैं कोण ......

ना मैं मूसा ना फरों
ना मैं जागण ना विच सोण
ना मैं आतिश ना मैं पोण
ना मैं रैदां विच भोण 
बुल्ले शाह खेड़ा है कोण | बुल्ला कि जाणा मैं कोण .......
   

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