कवि : राजिंदर किशन
सुख के सब साथी दुःख में न कोई
मेरे राम मेरे राम
तेरा नाम एक साझा दूजा न कोई
जीवन आनी जानी छाया झूठी माया झूठी काया
फिर काहे को सारी उमरिया पाप की गठरी ढोई | सुख के ....
ना कुछ तेरा ना कुछ मेरा ये जग जोगी वाला फेरा
राजा हो या रंक सभी का अंत एक सा होई | सुख के ......
बाहर की तू माटी फाके मन के भीतर क्यों न झांके
उजले तन पर मान किया और मन की मेल ना धोई | सुख के .....
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