Friday, June 8, 2012

Jhini Chadariya ( झीनी चदरिया )

आज का गीत भारत के महाकवि कबीर दास जी का लिखा हुआ है | वे महाकवि इसलिए हैं क्योंकि आज पांच सौ वर्ष बाद भी उनके गीत उतने ही जीवंत और लोकप्रिय है जितने शायद वे अपने समय में थे | आज भी उनके दोहे और गीत भारतीय जन मानस को श्रेष्ठ जीवन मूल्यों और सदाचरण का सन्देश दे रहे हैं |

इस गीत में कबीर मानव शरीर की तुलना चादर से कर रहे हैं | जिस प्रकार एक चादर को बनाने में दस माह का समय लगता है (१५वीं शताब्दी में ) उसी प्रकार मानव शरीर भी दस माह में तैयार होता है | कबीर दास जी कहते हैं कि अधिकतर पुरुष इस शरीर रूपी चादर को गलत आचरण से मैली कर देते हैं | इसलिए वह बड़े जतन से सद आचरण का पालन करने का प्रयास करते हैं ताकि अंत में इस शरीर को ईश्वर को ज्यों का त्यों लौटा सके | 

यह गीत कई लोगों ने अलग अलग रूप में अपने हिसाब से गाया है | मुझे इंडियन ओशियन द्वारा गया हुआ रूप बहुत पसंद है | उन्होंने गीत को अपने हिसाब से थोड़ा बदल दिया है | वही गीत यहाँ पर लिख रहा हूँ |

कवि : कबीर

झीनी झीनी झीनी झीनी

झीनी रे झीनी रे झीनी चदरिया झीनी रे झीनी रे झीनी 
के राम रस पीनी चदरिया झीनी रे झीनी रे झीनी |

अष्ट कमल दल चरखा डोले
पांच तत्त्व गुण तीनी | 

साँ को सियत मास दस लागे
ठोक ठोक के बीनी | |  झीनी रे .......

सो चादर सुर नर मुनि ओढ़ी
ओढ़ी के मैली कीनी चदरिया | 

दास कबीर ने जतन करि ओढ़ी
ज्यूँ की त्यूं धर दीनी ||

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