आज फिर गुरुदेव का लिखा हुआ एक गीत लिख रहा हूँ । बसंत ऋतु के आगमन का इससे सुन्दर बखान शायद किसी और गीत में मिलना कठिन है । शायद गुरुदेव की यही खासियत है कि उनका हर गीत इतना मधुर और ह्रदयस्पर्शी होता है कि वह अपने आप में मील का पत्थर लगता है । दुःख की बात है उनके गीतों को सभी भारतीयों तक पहुँचाने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किया गया है । अगर गुरुदेव के कुछ गीतों को हिंदी पाठ्यपुस्तकों में सम्मिलित किया जाय तो उसमे कोई बुराई नहीं होगी । फिर वे भले ही बंगला या ब्रज बोली में हो । अगर तुलसीदास, सूरदास के अवधी में लिखे पदों को पाठ्यपुस्तक में रखा जा सकता है तो गुरुदेव के बांग्ला गीतों को क्यों नहीं ।
कवि : गुरुदेव रबिन्द्रनाथ ठाकुर
मधुरो बशंतो एशेछे
मधुरो मिलानो घटाथे
आमादेर मधुरो मिलानो घटाथे ।। मधुरो ....
मधुरो मोलोयो शमीरे
मधुरो मिलानो घटाथे
आमादेर मधुरो मिलानो घटाथे ।। मधुरो ....
गुहाको लेखोनी छुटाए
कुशुमो तुलीचे फूटाये
लिखेछे प्रणोयो कहेनी
बिबिधा बोरोन छुटाते ।। मधुरो ....
हेरो पुरानो प्राचीनो धरोनी
होएछे शमोलो बोरोनी
जन जोबोनो प्रोबाहो छुटेछे
कालेरे शाशोन टुताते ।
पुरानो बिराहो हानिछे
नबीनो मिलानो आनिछे
नबीनो मिलानो आयेलो
नबीनो जीवनो फूटाते ।। मधुरो ....