मजरूह सुल्तानपुरी का यह गीत अपने आप में सुन्दर तो है ही किन्तु स्वर्गीय तलत महमूद की आवाज़ इस गीत को एक अलग ऊँचाई प्रदान करती है |
जलते हैं जिसके लिए तेरी आँखों के दीये
कवि : मजरूह सुल्तानपुरी
ढुंढ लाया हूँ वही गीत मैं तेरे लिए
दर्द बन के जो मेरे दिल में रहा, ढल न सका
जादू बन के तेरी आँखों में रुका, चल न सका
आज लाया हूँ वही गीत मैं तेरे लिए | जलते हैं ......
दिल में रख लेना इसे हाथों से ये छुटे न कहीं
गीत नाजुक है मेरा शीशे से भी टूटे न कहीं
गुनगुनाऊंगा यही गीत मैं तेरे लिए | जलते हैं ......
जब तलक न ये तेरे रस के भरे होठों से मिले
यूँ ही आवारा फिरेगा ये तेरी जुल्फों के तले
गाये जाऊंगा यही गीत मैं तेरे लिए | जलते हैं .........
तलत महबुब साहब मेरे पसंदिदा गायक हैं और ये गाना मेरेलिए बहुतहि खास है ! आपने ईसे शेअर किया ईसलिए आपका दिलसे शुक्रिया. 🙏
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