Sunday, June 10, 2012

Aazaadiyan ( आज़ादियाँ )

वैसे तो मैं फ़िल्मी गीतों से दूर रहने का प्रयास करता हूँ किन्तु यह गीत सुनकर ऐसा लगा कि मानो मन के किसी कोने में पड़ी भावनाओं को किसी ने स्वर प्रदान कर दिया हो | यह गीत सचमुच ही नई पीढ़ी में धधक रही कुछ कर दिखाने की चाह को उजागर करता है | शायद ये चाह पहले की पीढ़ीयों में भी रही होगी किन्तु वर्त्तमान पीढ़ी की ख़ास बात यह है कि वह अपने लक्ष्यों को पाने के लिए पुरानी परम्पराओं को तोड़ने और नयी अनजान राहों को चुनने से नहीं हिचकिचा रही है | यही कारण है कि आजकल भारतीय संगीत और फ़िल्मों में कहीं कुछ नयापन देखने को मिलता है | 

कवि : अमिताभ भट्टाचार्य 

पैरों की बेड़ियाँ ख्वाबों को बांधे नहीं रे, कभी नहीं रे 
मिट्टी की परतों को नन्हे से अंकुर भी चीरे, धीरे धीरे |

इरादे हरे भरे जिनके सीनों में घर करे 
वो दिल की सुने, करे, ना डरे, ना डरे | 

सुबह की किरणों को रोके वो सलाखें है कहाँ 
जो ख्यालों पे पहरे डाले वो आँखे है कहाँ 
पर खुलने की देरी है परिंदे उड़ के चूमेंगे 
आसमां, आसमां, आसमां | 

आज़ादियाँ आज़ादियाँ मांगे ना कभी
मिले मिले मिले 
आज़ादियाँ आज़ादियाँ 
जो छीने वही, जी ले जी ले, जी ले |

कहानी ख़त्म है या शुरुआत होने को है 
सुबह नयी है ये या फिर रात होने को है
आने वाला वक्त देगा पनाहे 
या फिर से मिलेंगे दो राहे 
खबर क्या, क्या पता | |

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