कुछ दिनों पहले नए गानों की खोज में मेरी नज़र एक एल्बम पर पड़ी । यूट्यूब पर उसका एक गीत सुना तो उसमें एक नए स्वर का आभास हुआ । बहुत खोजने पर भी जब वह कहीं नहीं मिला तो मैंने उसके संगीतकारों को लिखा । ऐसी उम्मीद तो नहीं थी कि कोई उत्तर आएगा किन्तु जब अगले दिन इनबॉक्स देखा तो उनका उत्तर पड़कर बहुत हर्ष हुआ । एक हर्ष इस बात का था कि उन्होंने बताया कि उनका एल्बम सारेगामा इंडिया की साईट पर उपलब्ध है । दूसरा हर्ष इस बात का था कि उन्होंने अपने एक मामूली प्रशंसक को उत्तर देने के लिए समय निकाला । यह गीत गुरुदेव का लिखा हुआ बहुत पुराना गीत है । गुरुदेव ने अपनी तरुण अवस्था में ब्रज भाषा में 22 गीत लिखे थे जिन्हें भानुसिम्हा पदावली के नाम से भी जाना जाता है । यह गीत उन्ही 22 गीतों में से एक है । यूँ तो यह गीत कई स्वर में सुनने को मिल सकता है किन्तु सोरेन्द्र मालिक और सौम्याजित दास ने अपने एल्बम "जय हे" में पश्चिमी साजों के साथ इसे एक बिलकुल नए अंदाज़ में प्रस्तुत किया है । और सुरेश वाडकर की आवाज़ ...ओह .... इस गीत की को जो मादकता प्रदान करती है उसको केवल गीत सुनकर ही महसूस किया जा सकता है ।
कवि : गुरुदेव रबिन्द्रनाथ ठाकुर
आजु सखी मुहु मुहु
गाय पिक कुहु कुहु
कुंज बनि दुहु दुहु
दुहार पानि चाय ।।
युवन मद बिलसित
पुलकिहिया उलसित
अवश तनु अलसित
मुरछि जनु जाय ।।
आजु मधु चांदनी
प्राण उन मादनी
शिथिल सब बांधनी
शिथिल बई लाज ।।
बचन मृदु मर मर
कांपे रिझ थर थर
शिहर तनु जर जर
कुसुम बन माज ।।
मलय मृदु कलयि छे
चरण नहीं चलयि छे
बचन मुह खलई छे
अंचल लुटाये ।।
आध फुट शत दल
वायु भरे टल मल
आंखि जनु ढल ढल
चाहि ते नाहि चाह ।।
अलकि फूल कांपहि
कपोल पड़े झापहि
मधु अनले तापहि
घसहि पडूपाय ।।
झरहि शिरे फुलदल
यमुना बहे कल कल
हास शशि ढल ढल
भानु मरि जाय ।।
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