Sunday, January 20, 2013

मधुरो बशंतो एशेछे ( Madhuro Bashanto Esheche )

आज फिर गुरुदेव का लिखा हुआ एक गीत लिख रहा हूँ । बसंत ऋतु के आगमन का इससे सुन्दर बखान शायद किसी और गीत में मिलना कठिन है । शायद गुरुदेव की यही खासियत है कि उनका हर गीत इतना मधुर और ह्रदयस्पर्शी होता है कि वह अपने आप में मील का पत्थर लगता है । दुःख की बात है उनके गीतों को सभी भारतीयों तक पहुँचाने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किया गया है । अगर गुरुदेव के कुछ गीतों को हिंदी पाठ्यपुस्तकों में सम्मिलित किया जाय तो उसमे कोई बुराई नहीं होगी । फिर वे भले ही बंगला या ब्रज बोली में हो । अगर तुलसीदास, सूरदास के अवधी में लिखे पदों को पाठ्यपुस्तक में रखा जा सकता है तो गुरुदेव के बांग्ला गीतों को क्यों नहीं । 

कवि : गुरुदेव रबिन्द्रनाथ ठाकुर 

मधुरो बशंतो एशेछे 
मधुरो मिलानो घटाथे 
आमादेर मधुरो मिलानो घटाथे ।। मधुरो ....

मधुरो मोलोयो शमीरे 
मधुरो मिलानो घटाथे 
आमादेर मधुरो मिलानो घटाथे ।।  मधुरो ....

गुहाको लेखोनी छुटाए 
कुशुमो तुलीचे फूटाये 
लिखेछे प्रणोयो कहेनी 
बिबिधा बोरोन छुटाते ।।  मधुरो ....

हेरो पुरानो प्राचीनो धरोनी 
होएछे शमोलो बोरोनी 
जन जोबोनो प्रोबाहो छुटेछे
कालेरे शाशोन टुताते ।

पुरानो बिराहो हानिछे 
नबीनो  मिलानो आनिछे 
नबीनो मिलानो आयेलो 
नबीनो जीवनो फूटाते ।।  मधुरो ....

Saturday, January 19, 2013

आजु सखी मुहु मुहु ( Aaju Sakhi Muhu Muhu )


कुछ दिनों पहले नए गानों की खोज में मेरी नज़र एक एल्बम पर पड़ी । यूट्यूब पर उसका एक गीत सुना तो उसमें एक नए स्वर का आभास हुआ । बहुत खोजने पर भी जब वह कहीं नहीं मिला तो मैंने उसके संगीतकारों को लिखा । ऐसी उम्मीद तो नहीं थी कि कोई उत्तर आएगा किन्तु जब अगले दिन इनबॉक्स देखा तो उनका उत्तर पड़कर बहुत हर्ष हुआ । एक हर्ष इस बात का था कि उन्होंने बताया कि उनका एल्बम सारेगामा इंडिया की साईट पर उपलब्ध है । दूसरा हर्ष इस बात का था कि उन्होंने अपने एक मामूली प्रशंसक को उत्तर देने के लिए समय निकाला । यह गीत गुरुदेव का लिखा हुआ बहुत पुराना गीत है ।  गुरुदेव ने अपनी तरुण अवस्था में ब्रज भाषा में 22 गीत लिखे थे जिन्हें भानुसिम्हा पदावली के नाम से भी जाना जाता है । यह गीत उन्ही 22 गीतों में से एक है । यूँ तो यह गीत कई स्वर में सुनने को मिल सकता है किन्तु सोरेन्द्र मालिक और सौम्याजित दास ने अपने एल्बम "जय हे" में पश्चिमी साजों के साथ इसे एक बिलकुल नए अंदाज़ में प्रस्तुत किया है । और सुरेश वाडकर की आवाज़ ...ओह .... इस गीत की को जो मादकता प्रदान करती है उसको केवल गीत सुनकर ही महसूस किया जा सकता है । 

कवि : गुरुदेव रबिन्द्रनाथ ठाकुर

आजु सखी मुहु मुहु 
गाय पिक कुहु कुहु 
कुंज बनि दुहु दुहु 
दुहार पानि चाय ।।

युवन मद बिलसित 
पुलकिहिया उलसित 
अवश तनु अलसित 
मुरछि जनु जाय ।।

आजु मधु चांदनी 
प्राण उन मादनी 
शिथिल सब बांधनी 
शिथिल बई लाज ।।

बचन मृदु मर मर 
कांपे रिझ थर थर 
शिहर तनु जर जर 
कुसुम बन माज ।।

मलय मृदु कलयि छे 
चरण नहीं चलयि छे 
बचन मुह खलई छे 
अंचल लुटाये ।।

आध फुट शत दल 
वायु भरे टल मल 
आंखि जनु ढल ढल 
चाहि ते नाहि चाह ।।

अलकि  फूल कांपहि 
कपोल पड़े झापहि 
मधु अनले तापहि 
घसहि पडूपाय ।।

झरहि शिरे फुलदल 
यमुना बहे कल कल 
हास शशि ढल ढल 
भानु मरि जाय ।।

Sunday, September 30, 2012

Chola Maati Ke Raam ( चोला माटी के राम )

यह गीत एक छत्तीसगढ़ी लोकगीत है | ये बहुत ही सुन्दर अंदाज़ में हमें स्मरण करता है कि हमारा शरीर और जो कुछ हमारे आसपास है सभी कुछ नश्वर है | आज नहीं तो कल सभी कुछ नष्ट हो जाना है | तो अगली बार जब आप अच्छी नौकरी की, प्रमोशन की, बंगले, धन अथवा किसी भी अन्य विषय में चिंता कर रहे हो तो यह गीत याद कर लेना आपके मुख पर मुस्कान आ जाएगी |

कवि : गंगाराम साखेत

चोला माटी के राम 
हाय चोला माटी के राम
एकर का भरोसा चोला माटी के रे

द्रोणा जैसे गुरु चले गए 
करण जैसे दानी संगी करण जैसे दानी
बाली जैसे वीर चले गए 
रावण जस अभिमानी | चोला माटी के राम एकर .....

कोनो रिहिस ना कोनो रहे भैया ही सबके पारी
एक दिन आई सबके बारी 
काल कोनोला छोड़ा नहीं 
राजा रंक भिखारी | चोला माटी के राम एकर .......

होसे पार लगे बरहेके 
हरि के नाम सुमरले संगी हरि के नाम सुमरले 
ये दुनिया माया के रे पगला 
जीवन मुक्ति कर ले | चोला माटी के राम एकर ......

Saturday, July 14, 2012

Bidhir Badhon Katbe Tumi ( बिधिर बाधोन काटबे तुमि )

आज फिर गुरुदेव का एक गीत लिख रहा हूँ | इस गीत का पूरा अर्थ तो नहीं जानता किन्तु संस्कृत के कुछ शब्दों से कुछ कुछ अंदाजा अवश्य लगा सकता हूँ | यह गीत उस समय लिखा गया था जब अंग्रेजी सत्ता भारत में अपने शिखर पर थी | ऐसे समय भारत जन मानुष बहुत ही हत्तोसाहित था | तब गुरुदेव ने भारतीयों का मनोबल बढ़ाने के लिए ये सुन्दर पंक्तियाँ लिखी थी | इसमें गुरुदेव देशवासियों का मनोबल बढ़ाते हुए कहते हैं वे अपनी शक्ति को पहचाने और विश्वास करे, वह शक्ति बड़े से बड़े बन्धनों को काट सकती है | एक बार फिर गुरुदेव ने बहुत ही सरल शब्दों में कितनी बड़ी बात कह दी है | यह गीत सत्यजीत रे की फिल्म 'घरे बाईरे' में किशोर कुमार की आवाज़ में सुना जा सकता है | 

कवि : गुरुदेव रबिन्द्रनाथ ठाकुर

बिधिर बाधोन काटबे तुमि
एमोन शक्तिमान
तुमि कि एमनी शक्तिमान |
आमादेर भांगा गोड़ा तोमार हाते
एमोन अभिमान
तोमादेर एमनी अभिमान ||

चिरोदिन तानबे पीछे
चिरोदिन राखबे नीचे
एतो बल नाई रे तोमार
शोयबे ना शेई टान | बिधिर बाधोन काटबे तुमि ...........

शाशोनेई जतोई घेरो
आछे बल दुर्बलेरो 
होउ ना जतोई बड़ो
आछेन भगबान 
आमादेर शक्ति मेरे
तोराओ बाछ्बी ने रे
बोझा तोर भारी होलेई
डूब बे तोरी खान | बिधिर बाधोन काटबे तुमि ............

Saturday, July 7, 2012

Ghir Ghir Aai Badariya Kaari ( घिर घिर आई बदरिया कारी )

भारत में मानसून का आगमन हो गया है | यही मौसम है मेघ मल्हार के गीतों का | भारतीय शास्त्रीय संगीत में इन गीतों के लिए अलग राग भी है - राग मियाँ की मल्हार |  प्रस्तुत है ऐसा ही एक गीत | 

कवि : जावेद अख्तर 

घिर घिर आई बदरिया कारी
घर घर लाई लाई महर मतवारी
घिर घिर आई बदरिया कारी 

काली काली कोयल कूके
डाली डाली भंवरा गूंजे
सन सन आये भीगी हवाएं
घन घन काले बदरा बोले

छम छम बाजे बरखा पायल
झम झम बरसे बदरी पागल
गिन गिन तिन राह निहारूं
किन किन नाम तोहे पुकारूं 

घिर घिर आई बदरिया कारी
घर घर लाई लाई महर मतवारी
घिर घिर आई बदरिया कारी 

Thursday, July 5, 2012

Aaj Jaane Ki Jid Na Karo ( आज ज़ाने की ज़िद ना करो )

कवि : फ़य्याज़ हाशमी

आज ज़ाने की ज़िद ना करो
यूँ ही पहलू में बैठे रहो 
आज ज़ाने की ज़िद ना करो 

हाय मर जायेंगे 
हम तो लुट जायेंगे
ऐसी  बातें किया ना करो | आज ज़ाने ......

तुम ही सोचो ज़रा 
क्यों न रोकें तुम्हे 
जान जाती है जब
उठ के जाते हो तुम 
तुमको अपनी कसम जानेजां
बात इतनी मेरी मान लो | आज ज़ाने .....

वक्त के कैद में जिंदगी है मगर
चंद घड़ियाँ यही है जो आज़ाद है
इनको खोकर मेरी जानेजां 
उम्र भर ना तरसते रहो | आज ज़ाने .......

Monday, July 2, 2012

Tu Thakur Tum Peh Ardaas ( तू ठाकुर तुम पे अरदास )


आज का गीत गुरु ग्रन्थ साहिब से एक शबद कीर्तन है | 

कवि : गुरु नानक देव 

तू ठाकुर तुम पे अरदास*
जियो पिंड सब तेरी रास**

तुम मात-पिता हम बारक तेरे
तुमरी कृपा में सुख घनेरे | तू ठाकुर ......

कोई न जाने तुमरा अंत
ऊँचे ते ऊँचा भगवंत | तू ठाकुर ....

सगल समग्री तुमरे सूत्र धारी 
तुम पे होए सो आज्ञाकारी | तू ठाकुर ....... 

तुमरी गत मीत तुम्ही जानी
नानक दास सदा कुर्बानी | तू ठाकुर ........

* अरदास : प्रार्थना 
** जियो पिंड सब तेरी रास : शरीर और आत्मा सभी तेरी संपत्ति है